Krishi Gyan - कृषि ज्ञान

मिट्टी की जाँच के लिए नमूना लेने का तरीका

खेतों में उगाई जाने वाली फसलों के लिए मिट्टी में सभी आवश्यक मुख्य (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश) एवं गौण (सल्फर, जिंक, फेरस इत्यादि) पोषक तत्वों की कितनी मात्रा मृदा में उपलब्ध है तथा कितनी मात्रा और डालने की जरूरत है, इसकी जानकारी के लिए प्रायः मिट्टी परीक्षण (Soil Testing) कराया जाता है।

फसल को पाले (Frost) से बचाये

सर्दियों की ऋतु में रात के समय जब न्यूनतम तापमान सामान्य से थोड़ा कम होता है तब प्रायः कोहरा छाये रहना तो एक आम बात है, लेकिन यदि यह तापमान लगभग 4-5 डिग्री सेंटीग्रेड तक या इससे भी नीचे पहुँच जाए तो कोहरे के साथ-साथ पाला (Frost) पड़ने का खतरा बहुत ही अधिक बढ़ जाता है।

फसल अवशेष प्रबंधन: मृदा की गुणवत्ता के लिए बेहतर समाधान

कृषि फसल अवशेष दो प्रकार के होते है;

प्रक्षेत्र अवशेष:- फसलों की कटाई के बाद खेत में ही बेकार छोड़ दी जाने वाली अपशिष्ट सामग्री (घास-फूसभूसापुवालपौधों के तने एवं ठूँठ आदि) को प्रक्षेत्र अवशेष (फार्म वेस्ट) कहा जाता है।

कृषि शिक्षा दिवस पर विशेष: कृषि शिक्षा की आवश्यकता और विकल्प

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) द्वारा प्रतिवर्ष 3 दिसम्बर को कृषि शिक्षा दिवसके रूप में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। देशभर मे स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान

मूँगफली की उन्नत कृषि तकनीक

देश में कुल तिलहन उत्पादन मे मूँगफली का दुसरा प्रमुख स्थान है। प्रमुख तिलहनों में से यह एकमात्र फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जो दलहनी फसलों की तरह जड़ों मे स्थित राइज़ोबियम द्वारा नत्रजन का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने मे सहायक होती है। मूँगफली की

टिड्डी

पृथ्वी पर व्याप्त असंख्य प्रजाति के कीटों मे से पर्यावरण एवं मानव जाति के लिए कुछ उपयोगी है, तो कुछ हानिकारक है। टिड्डे बड़े आकार के शाकाहारी है लेकिन नुकसानदायक कीटों की श्रेणी मे आते है, और आदि काल से ही मानव सभ्यता के लिए संकट बने हुए है।

फसल उत्पादन में रॉक फॉस्फेट का उपयोग

फास्फोरस फसलों द्वारा आवश्यक महत्वपूर्ण पोषक तत्वों में से एक है और कई मृदाओं में इसकी उपलब्धता फसल की पैदावार को सीमित करती है। सामान्य तौर पर, भारतीय मृदायें फॉस्फोरस की उपलब्धता में अक्षम होती है, अतः अच्छी फसल के लिए फॉस्फोरस का अतिरिक्त अनुप्रयोग

तिल की उन्नत कृषि तकनीक

तिल खरीफ में उगाई जाने वाली तिलहनी फसलों मे से मुख्य है, और इसकी खेती शुद्ध एवं मिश्रित फसल के रूप मे की जाती है। मैदानी क्षेत्रों में प्रायः इसे ज्वार, बाजरा तथा अरहर के साथ बोते है। तिल के अधिक उत्पादन लेने के लिए उन्नत किस्मों के प्रयोग व आधुनिक सस्य क्रियाओं को

ग्वार की उन्नत कृषि तकनीक

ग्वार एक फलीदार (लेग्युमिनस) फसल है जिसके उत्पादन की दृष्ठि से राजस्थान अग्रणी राज्य है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। ग्वार का शाब्दिक अर्थ गौ आहार है, अर्थात प्राचीन काल में इसकी उपयोगिता केवल पशुओं के लिए

गेहूँ की उन्नत कृषि पद्दती

अनाज उत्पादन मे गेहूँ का प्रमुख स्थान है। इसकी खेती समान्यतः सिंचित क्षेत्रों मे की जाती है।

उन्नत किस्में: राज 4037, राज 4083, राज 4120, राज 3777, राज 4079, जी.डब्ल्यू. 11, राज 4238

मोठ की उन्नत कृषि तकनीक

कुल दलहन उत्पादन मे मोठ (मोठ बीन) आठवें स्थान पर है, तथा विश्व पटल पर भारत एवं देश मे राजस्थान मोठ के उत्पादन मे अग्रणी है। फलीदार दलहनी फसल होने से मोठ नत्रजन के स्थिरीकरण द्वारा मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मोठ की खेती बारानी परिस्थितियों मे किये जाने से शुष्क से

मूँग की उन्नत कृषि तकनीक

मूँग का वानस्पतिक नाम विग्ना रेडिएटा, जो कुल दलहन उत्पादन मे चतुर्थ स्थान पर है। फलीदार दलहनी फसल होने के कारण मूँग वायुमण्डलीय नत्रजन (नाइट्रोजन) का स्थिरीकरण करके मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। मूँग की खेती बारानी व सिंचित दोनों ही परिस्थितियों मे की जाती है,

सरसों की फसल मे आरा मक्खी का नियंत्रण

आरा मक्खी जिसे मस्टर्ड फ्लाई के नाम से भी जाना जाता है। यह कीट सरसों की फसल को शुरुआती 8-12 दिनों मे अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की काले स्लेटी रंग की सूंड़ीयाँ अंकुरण के कुछ ही दिन मे सर्वाधिक नुकसान करती है। जो सरसों की पत्तियों को किनारों व बीच से काट कर

सरसों उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

तिलहन के उत्पादन मे सरसों का देश मे दुसरा प्रमुख स्थान है। इसके तेल का उपयोग मुख्य रूप से विभिन्न तरह के खाद्य पदार्थ बनाने, शरीर एवं बालों मे लगाने तथा साबुन व ग्लिसरोल बनाने आदि मे किया जाता है। सरसों मे उपस्थित तीखापन एलाइल आइसोथियोसाइनेट नामक कार्बनिक पदार्थ के

जीरा उत्पादन की उन्नत कृषि तकनीक

बीजीय मसाला उत्पादन मे जीरे का दुसरा प्रमुख स्थान है, जिसका वानस्पतिक नाम क्युमिनम साइमिनम है। इसके वाष्पशील सुगंधित तेल का उपयोग खुशबूदार साबुन व केश तेल बनाने व ठंडाई, शराब आदि पेय पदार्थो को सुसज्जित करने में भी किया जाता हैं। जीरे मे वायुनाशक व मूत्रवर्धक गुण पाये जाते है, जिसके कारण देशी व

चना उत्पादन की उन्नत खेती पद्दती

दलहन के उत्पादन मे चना प्रमुख फसल है, जिसका उपयोग मुख्यतः साबुत दानें, दाल व बेसन के रूप में किया जाता है। चना की फसल कम सिंचाई मे होने के कारण कम वर्षा वाले स्थानों मे भी इससे अन्य फसलों की अपेक्षा ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है। चने की खेती संरक्षित नमी के

सहजन (मोरिंगा) का महत्व

सहजन बहुत ही उपयोगी पौधा है जिसे अंग्रेजी में "ड्रमस्टिक" एवं वैज्ञानि‍क नाम मोरिंगा ओलीफेरा से भी जाना जाता है। इस पौधे के लगभग सभी भाग खाने योग्य होते है। मोरिंगा की पत्तियों को सीधे ही सलाद के रूप मे खा सकते है या फिर इनको छायां मे सूखाकर पाउडर बना सकते है। मोरिंगा पौषण एवं औषधीय गुणों से सम्पन्न होता है। इसके बीजों से तेल भी नि‍काला जाता है। एक वर्ष में इसका

PROM - फॉस्फेट संपन्न जैविक खाद (Phosphate Rich Organic Manure)

अधिकांश भारतीय मृदाओ मे फॉस्फोरस की उपलब्धता कम या मध्यम होने के कारण इस तत्व की पूर्ति के लिए मृदा मे बाहरी स्त्रोत द्वारा प्रयोग करने की आवश्यकता होती है वहीं दूसरी और पौधों के संतुलित पोषण में फॉस्फोरस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। जबकि रासायनिक उर्वरकों की उच्च कीमत के कारण फॉस्फोरस युक्त उर्वरकों के उपयोग मे कमी

जल संसाधन प्रबंधन

जल संरक्षण नीतियाँ और जल संरक्षण के उपाय जल क्षैत्र (वाटरशेड) प्रबंधन के मुख्य घटक है, जो प्राकृतिक संसाधनों के न्यूनतम खतरे के साथ इष्टतम उत्पादन के लिए एक वाटरशेड की भूमि और जल संसाधनों के उचित उपयोग को सम्मिलित करता है।

मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए जैव उर्वरकों का प्रयोग

आज कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाना कृषि वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सघन खेती से मृदा में पोषक तत्व धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं। इस कमी को रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से पूरा किया जाता है। अधिकांश किसान संतृप्त मात्रा में रासायनिक खाद के उपयोग के बावजूद इष्टतम